मनुष्य शक्तिहीन या शक्तिशाली…

हजारो लोगो से बातचीत करने और उनका अध्ययन करने के बाद यह निष्कर्ष निकला है की 80 प्रतिशत से ज्यादा लोग किसी न किसी हद तक सीखी हुई असहायता का शिकार होते है। और कभी कभार तो काफी हद तक। सीखी हुई असहायता से पीड़ित लोग यह महसूस करते है की वह अपना लक्ष्य हासिल करने और जीवन को बेहतर बनाने में अक्षम है। सीखी हुई असयता को हम सरल शब्दों में कह सकते है की “में नहीं कर सकता ” ।

ऐसे लोगो को जब भी कोई अवसर या नया लक्ष्य दिया जाता है,तो वे तत्काल प्रतिक्रिया करते है “में नहीं कर सकता ” फिर वह कई तरह के कारण बताने में लग जाते है। की वह खास लक्ष्य या उद्देश्य उनके लिए संभव क्यों नहीं है। में अपने करियर में आगे नहीं बाद सकता। मुझे बेहतर नौकरी नहीं मिल सकती, में पड़ने का समय नहीं निकाल सकता, में पैसे नहीं बचा सकता, में वजन कम नहीं कर सकता,में अपना खुद का बिजनेस शुरू नही कर सकता। में दूसरी आमदनी  वाला बिजनेस शुरू नहीं कर सकता, में अपने संबंधो को बदल नहीं सकता। जैसे कई कारण गिनाते रहते है।

काम चाहे जो भी हो, उसके पास खुद को रोकने का कोई न कोई कारण तो होता ही है। जो फ़ौरन अपनी सम्भावनाओ पर ब्रेक लगा देता है। इस तरह की सोच आपको नए लक्ष्य तय करने की इच्छा को ख़त्म कर देता है।और किसी भी तरह की परिस्थिति को बदलने की अनुमति नहीं देता। आप उस कार्य को तभी कर सकते है जब आप निश्चय करे की में वह काम कर सकता हु या में वह काम नहीं कर सकता। दोनों ही पक्षों में आपकी सोच ही महत्वपूर्ण होती है।

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